नीलकंठ
For 7th
उ.1. नीली गर्दन के कारण मोर का नाम रखा गया नीलकंठ और
उसकी छाया के समान रहेने कारण मोरनी का नाम रखा गया राधा |
उ.2. दोनों जाली के बड़े घर में पहुँचने पर उनका स्वागत
ऐसे किया गया जैसे नववधू के आगमन पर किया जाता है | लक्का कबूतर
नाचना छोड़कर दौड़ पड़े और उनके चारों ओर घूम-घूमकर गुटरगूँ- गुटरगूँ की रागिनी अलापने
लगे, बड़े खरगोश गंभीर रूप से उनका नीरीक्षण करने लगे, छोटे करगोश उनके चारों ओर उछल-कूद मचाने लगे, तोते एक
आँख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे |
उ.3. लेखिका बताती
है :-
* लेखिका के
सामने पंख फैलाकर खड़े होना |
* लेखिका के
साथ आनेवाले दोस्तों के सामने भी पंख फैलाकर खड़े होना |
* गर्दन को
टेढ़ी करके शब्द सुनना |
* गर्दन ऊंची
करके देखना |
उ.4. लेखिका इस घटना की ओर संगेत करती है कि “नाम के अनुरूप
वह स्वभाव से भी कुब्जा ही प्रमाणित हुई| राधा नीलकंठ और राधा
साथ-साथ न देख पाती | वह उन्हे साथ देखते ही मारने दौड़ती | एक बार उसने राधा के अंडे भी तोड़ डाले | इस कलह कोलाहल
से और उससे भी अधिक राधा की दूरी से बेचारे नीलकंठ की प्रसन्नता का अंत हो गया |
उ.5. वसंत में जब आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लड़ जाते
थे, अशोक नए लाल पल्लवों से ढ्क जाता था, तब जालीघर में
नीलकंठ इतना अस्थिर हो उठता कि उसे बाहर छोड़ देना पड़ता |
उ.6. इसका कारण यह था कि वह क्रूर स्वभाव की थी | वह दूसरों से मिलने की कभी कोशिश नहीं करती थी | उसमे
संवेदना, हमदर्दी, तथा अपनत्व की भावना
नहीं थी | वह सभी को नोंच डाली थी |
उ.7. एक
बार एक सांप जालीघर के भीतर आ गया | केवल एक शिशु खरगोश सांप की पकड़ में आ गया
| नन्हा खरगोश
धीरे-धीरे चीं-चीं कर रहा था | नीलकंठ इसे सुनकर दूर झूले से नीचे आ गया | वह अपनी चोंच से सांप
को मार-मार कर शिशु खरगोश को बचाया|
इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की निम्न विशेषताएँ
:-
* वीरता – वह
सांप के दो खंड करके अपनी वीरता का परिचय दिया |
* सतर्कता – जालीघर
के ऊंचे झूले पर सोते हुए भी उसे खरगोश की कराह सुन लिया |
* कुशल संरक्षक
– खरगोश को मृत्यु के मुह से बचाकर उसने सिद्धा कर दिया की वह
कुशल संरक्षक है |
भाषा की बात :
1. गंध :- गंधहीन, गंधस्वरूप, सुगंध |
रंग :- रंगना, रंगरूप,रंगगीला |
फल :- फलस्वरूप, फलदार, सफल |
ज्ञान :- ज्ञानवान, अज्ञानी, अज्ञान |
2. नील+ आभ = नीलाभ सिंहासन = सिंह + आसन
नव + आगंदुक
= नवागंतुक मेघोच्छन्न = मेघ + आच्छन्न
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